जयपुर. मरीजों की दवा बचाकर (सीटी, एमआरआई और एंजियोग्राफी काॅन्ट्रास्ट) मरीजों को ही बेचने के मामले में सीएमओ ने रिपोर्ट मांगी है। मामले में पांच सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर दी गई है। कमेटी ने बुधवार को एसएमएस ड्रग स्टोर, निशुल्क दवा स्टोर संचालक सहित अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों से चार घंटे पूछताछ की है। प्रारंभिक पूछताछ में मिलीभगत कर समय पर दवा का आॅर्डर नहीं देने, निजी एमआरआई और सीटी स्केन संचालक के कर्मचारियों द्वारा गड़बड़ी करने सहित कई महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई। वहीं ड्रग विभाग ने भी मामले में जांच तेज कर दी है।
सीएमओ से रिपोर्ट मांगने के तुरंत बाद जांच कमेटी गठित की गई, जिसमें डॉ. अनिल शर्मा, डॉ. एसएस शर्मा, डॉ. अरविंद शुक्ला, डॉ. सीबी मीणा और डॉ. मीनू बगरटटा थे। इन्होंने सुबह 11:30 बजे अस्पताल के ड्रग स्टोर और निशुल्क दवा योजना से जुड़े कर्मचारियों को बुला लिया और पूछताछ की। ड्रग कंट्रोलर राजाराम शर्मा ने बताया कि सी एंड एफ और अन्य सभी जगह से रिपोर्ट मांगी गई है। साथ ही दोनों दुकानों पर डीसीओ सीमा मीणा और ओमप्रकाश को भेज कर वहां की जांच कराई गई है, जहां से दवाएं खरीदी जाती हैं।
ड्रग विभाग और जांच कमेटी की प्रारंभिक जांच में ये 5 तथ्य सामने आए
- जितने कांट्रास्ट की खपत होती है, उससे कम का आर्डर दिया जाता है।
- एसएमएस में पीपीपी मोड में दिए गए सीटी सेंटर से गड़बड़ी हो रही हैं और वहां काम करने वाले कर्मचारी मरीजों के साथ खिलवाड़ करते हैं।
- जिन दुकानों से जिन बिल की दवाएं बेची गई, उनके बिल वहां थे ही नहीं। और जो बिल दिया गया, वे दवाएं नहीं थी। यानि कि दवाओं के बेचान में जानबूझकर गड़बड़ी की गई।
- अस्पताल के कर्मचारी और कुछ बाबू मिलीभगत में शामिल हैं।
- आरएमएससीएल से निशुल्क दवा योजना की दवाएं समय पर नहीं आना भी बड़ी वजह है, इसीलिए ऐसा हो गया।
3 बड़े सवाल
- 1. अस्पताल से समय पर आर्डर क्यों नहीं दिए गए, गड़बड़ी किसने की?
- 2. बैच नंबर आरएमएससीएल की दवा के हैं या नहीं?
- 3. जिन दवा के बैच नंबर बिल पर लिखे, वे कहां हैं?
मरीजों ने दुकान से खरीदा, फिर दुकान पर बिक गया कॉन्ट्रास्ट
दैनिक भास्कर रिपोर्टर ने मरीजों की शिकायतों और अपनी आंखोंदेखी के बाद 22 जनवरी को खुलासा किया था...मरीजों को पूरा कॉन्ट्रास्ट लगाने के बजाय कम लगाया गया। दो मरीजों के कॉन्ट्रास्ट में से 20-30 एमएल बचाकर तीसरे मरीज को लगाया गया। ...और इस तरह जो काॅन्ट्रास्ट मरीज दुकान से खरीद लाए थे, वो भी दुकानों पर बिकने पहुंच गया। रोज लगने वाले कॉन्ट्रास्ट के हिसाब से महीने में इसकी कीमत 90 लाख रुपए के करीब है। यह भी बताया कि मुफ्त दवा में शामिल कॉन्ट्रांस्ट 30 दिन से नहीं मिल रहा। भास्कर ने ड्रग विभाग को बताया, विभाग ने तुरंत एक्शन शुरू कर दिया।